Sunday, March 30, 2014

मधुशाला में एक शाम

जब उस दिन बैठे हम मधुशाला में,
तो बगल में बैठे थे नवयुग के बच्चन |
नशे में धुत, थे एक युवती पर टकटकी लगाये,
कुछ ठीक ना थे उनके लच्छन ||

दोस्त उनके केहकहे लगा रहे थे,
"भाभी, भाभी", फुसफुसा रहे थे |
करना तो चाहते थे जगज़ाहिर इश्क़ अपना,
पर जनाब थोड़ा हिचकिचा रहे थे ||

ठहाको की आवाज़ अब कुछ बढ़ने लगी थी,
पहुंच गयी थी तैरती युवती के कानो में |
यहाँ इस आशिक़ के दिल के तार बज रहे थे,
जैसे अमूमन बजते हैं फिल्मी गानो में ||

हम बैठे तो कुछ दूरी पर थे,
पर गौर से सारा माजरा देख रहे थे |
तभी बैरे ने आवाज़ देके सावधान किया,
बेध्याने हम चने का छिल्का ज़मीन पर ही फेंक रहे थे ||

अब युवती के कॅंप में भी गेहमा गेहमी चली,
सहेलियाँ अब उसे चिढ़ा रही थी |
उसके सब्र का बाँध जाने कब टूटा,
यकायक देखा तो वो पूर्व परिचित युवक की तरफ ही रही थी ||

मेज़ पर हाथ रख कुछ अदा, कुछ गुस्से से वो कही,
"लड़के, घूरके के देखो ना मूझे तुम यूं!" |
उड़े होश तब युवक बुदबुदाया,
"स्वेर छोटी ड्रेस में बॉम्ब लगदी मैनू" ||

उसके बाद जो तमाचे की आवाज़ हुई,
उससे चरमरा गया था पूरा माहौल |
ये छोटी से प्रेम गाथा बस यहीं समाप्त हुई,
थॅंक यौ फोल्क्स, दैट विल बी औल ||

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